नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत से ड्रग्स केस में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को झटका लगा है उनको जमानत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने संजीव भट्ट की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि आरोप काफी गंभीर हैं, जमानत देना सही नहीं होगा, जिसके बाद संजीव भट्ट ने अपनी जमानत याचिका वापस ले ली। एक केस में सुमेर सिंह राजपुरोहित की गिरफ्तारी के बाद संजीव भट्ट के खिलाफ मामला सामने आया था। पुलिस के मुताबिक, पालनपुर के होटल लाजवंती में लाई जा रही दवाओं के बारे में जानकारी मिली थी। छापेमारी के दौरान ड्रग्स बरामद किया गया और नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम, 1985 (एनडीपीएस) के तहत सुमेर सिंह राजपुरोहित की गिरफ्तारी हुई थी। इस मामले में विस्तृत जांच के बाद पुलिस ने फरवरी 2000 में एक समरी रिपोर्ट दायर की थी।
वहीं, पाली का मामला गुजरात मामले में आरोपी सुमेर सिंह राजपुरोहित द्वारा दायर एक आपराधिक शिकायत के परिणामस्वरूप हुआ। उसने 17 अक्टूबर, 1996 को एक बयान दिया, जिसमें संजीव भट्ट सहित 9 लोगों पर एक वकील के घर में ड्रग्स प्लांट करने को लेकर आरोप लगाए गए थे। इस केस में जांच के बाद मार्च 1997 में जोधपुर की विशेष अदालत में चार्जशीट दायर की गई थी। इससे पहले बुधवार को गुजरात कैडर के बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने हिरासत में मौत के तीन दशक पुराने एक मामले में अपनी उम्रकैद की सजा निलंबित करने संबंधी याचिका उच्चतम न्यायालय से वापस ले ली थी। संजीव भट्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ को बताया कि गुजरात उच्च न्यायालय दोषसिद्धि के खिलाफ भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी भट्ट की अपील की सुनवाई दैनिक आधार पर कर रहा है। सिब्बल ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी और कहा कि उच्च न्यायालय को कानून के अनुसार मामले से निपटने के लिए कहा जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने तब कहा कि उच्च न्यायालय में अपील पर कानून के अनुसार गुणदोष के आधार पर फैसला किया जाएगा। इसके साथ ही याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी गई। उच्च न्यायालय ने पहले संजीव भट्ट की सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उनके पास अदालतों के प्रति बहुत कम सम्मान है और पूर्व आईपीएस अधिकारी ने जानबूझकर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की कोशिश की थी।