वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद की संवैधानिकता पर आये खंडित निर्णय से उन लोगों को अवश्य निराशा हुई होगी जो मान बैठे थे कि भारतीय परिवारों और पति-पत्नी संबंधों में एक कथित बड़े बदलाव के सूत्रधार वही बनेंगे। लंबी सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना बहुप्रतीक्षित निर्णय पिछले हफ्ते सुना दिया। यह खंडित रहा। दोनों पक्षों को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने की स्वतंत्रता दी गई है। एक न्यायमूर्ति ने वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद को असंवैधानिक बता कर रद्द किया और पीठ के दूसरे सदस्य ने इसे संवैधानिक बताया है। गैर सरकारी संगठनों-आरआईटी फाउंडेशन और आल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन एसोसिएशन सहित व्यक्तिगत तौर पर दो व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375(दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। दलील दी गई कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करता है जिनका उनके पति यौन उत्पीडन करते हैं। दुष्कर्म कानून के तहत पतियों को दी गई छूट खत्म करने का अनुरोध किया गया था। कोर्ट ने 21 फरवरी को विस्तृत सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। धारा 375 में दिए गए अपवाद-दो के तहत एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी(नाबालिग नहीं है)के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य दुष्कर्म नहीं है।
निर्णय सुनाते हुए जस्टिस राजीव शकधर ने कहा कि जहां तक मेरा मानना है धारा 375 और धारा 376(ई) का अपवाद-दो संविधान के अनुच्छेद 14,15,19(एक)(ए) और 21 का उल्लंघन है। ऐसे में इसे रद्द किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा, यदि गर्लफ्रेंड या लिव-इन पार्टनर के मना करने के बाद भी उसे बलपूर्वक शारीरिक संबंध के लिए मजबूर किया जाता है, तो पतियों को दुष्कर्म के आरोप से बचने का कवच क्यों मिले? वहीं, पीठ के दूसरे सदस्य जस्टिस सी हरिशंकर ने कहा कि मैं अपने विद्वान साथी से असहमत हूं। धारा 375 और धारा 376(ई) का अपवाद-दो संविधान के अनुच्छेद 14,19(एक)(ए) और 21 का उल्लंघन नहीं करते हैं। यह अपवाद स्पष्ट भेद पर आधारित है। इस विषय में उचित होगा कि हाल ही एक मामले में तलाक के लिए मंजूरी देते समय छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खण्डपीठ द्वारा की गई टिप्पणी पर भी गौर किया जाए। खण्डपीठ ने कहा है, पति या पत्नी के साथ शारीरिक संबंध से इंकार करना क्रूरता के बराबर है। इस मामले में पत्नी ने पति के साथ क्रूरता का व्यवहार किया है। पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध स्वस्थ वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी है।
कथित वैवाहिक दुष्कर्म का मामला फिलहाल शांत होता नहीं प्रतीत हो रहा। अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस का कहना है कि देश कि अहम अदालतों में से एक दिल्ली हाईकोर्ट में अगर मूल भ्रम है तो यह दुख की बात है। इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। उधर, अधिवक्ता करुणा नंदी के अनुसार जस्टिस राजीव शकधर ने इस असंवैधानिक मानते हुए कहा है कि यह संविधान में उल्लिखित अनुच्छेद 14,15,19 और 21 का उल्लंघन करते हैं। आदेश में स्पष्ट है कि यदि शिकायत की जाती है तो उस पर सामान्य दुष्कर्म की शिकायत की तरह कार्रवाई की जानी चाहिए।
इस विषय पर भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार का दृष्टिकोण बहुत ही संतुलित और यथार्थपरक रहा है। 2017 में एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध नहीं बनाया जा सकता। यह विवाह संस्था को अस्थिर कर सकता है और पतियों को परेशान करने का आसान साधन बन सकता
हैै। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध मानने की मांग पर समग्र दृष्टिकोण लिया जाना चाहिए। सरकार ने इसी वर्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा था, सिर्फ इसलिए कि अन्य देशों, ज्यादातर पश्चिमी देशों ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित कर दिया है, इसका मतलब यह नहीं है कि भारत को आंखें बंद करके उनका पालन करना चाहिए। साक्षरता, बहुसंख्यक महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण की कमी जैसे विभिन्न कारकों से भारत की अपनी समस्याएं हैं। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र महिला रिपोर्ट के अनुसार भारत उन 30 देशों में शामिल है, जहां वैवाहिक दुष्कर्म अपराध की श्रेणी में नहीं है। इनमें चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, हैती, लाओस और माली सहित अधिकांश विकासशील देश शामिल हैं। केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने फरवरी 2022 में राज्यसभा में घरेलु हिंसा पर एक प्रश्र पर बड़ा सटीक उत्तर दिया। उन्होंने कहा, इस देश में हर विवाह को हिंसक विवाह और प्रत्येक पुरुष को बलात्कारी मान कर निंदा करना सही नहीं है। भाजपा के सुशील मोदी ने भी तर्कपूर्ण टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा, वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध मानने पर यह विवाह संस्था को ही खत्म कर देगा। यह साबित करना कठिन हो जाएगा कि कब पत्नी ने सहमति दी थी या नहीं। मोदी की बात में दम है। वैवाहिक दुष्कर्म घर के अंदर की वह घटना है जिसका कोई गवाह नहीं हो सकता। इसकी सत्यता या असत्यता को कैसे सिद्ध किया जाएगा? कोई महिला कहती है कि उसके पति ने उसके साथ दुष्कर्म किया है तो क्या उसके एक पक्षीय दावे को सच मान कर पति को सजा दे दी जाएगी? फिर महिला और पुरुषों के बीच समानता की बात करने के दावों का क्या मतलब रह जाएगा?
लेखिका और वृत्तचित्र निर्माता दीपिका नारायण भारद्वाज की एक टिप्पणी अखबार में प्रकाशित हुई थी। उनके अनुसार भारत में पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों को दुष्कर्म के दायरे में लाए जाने को लेकर व्यक्त की जा रहीं चिंताओं में एक यह है कि दुर्भावना रखने वाली पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार को परेशान करने के लिए दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाये जा सकते हैं। 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीडन कानूनों के दुरुपयोग को कानूनी आतंकवाद करार दिया था। इसके बाद 2014 में दहेज उत्पीडन के मुकदमों में पतियों की तत्काल गिरफ्तारी नहीं किए जाने के निर्देश पारित किए। इसके बाद से एक बड़ा बदलाव यह देखा गया कि वैवाहिक विवादों में दहेज उत्पीडन के साथ घरेलू हिंसा और अप्राकृतिक यौन शोषण की धाराएं जुड़वाई जाने लगी। मकसद पति और उसके परिवार वालों की गिरफ्तारी होता है। फरवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्णमुरारी की पीठ ने बिहार के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि देश में वैवाहिक मुकदमेबाजी काफी बढ़ गई है। विवाह संस्था को लेकर अब पहले से अधिक असंतोष और टकराव है। पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ दहेज प्रताडना दंड संबंधी धारा 498ए जैसे प्रावधानों का हथियार की तरह उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। कल्पना कर सकते हैं कि वैवाहिक दुष्कर्म के नाम से अगर नया कानून बना दिया जाता है तब इसका दुरपयोग रोकना कितना कठिन हो जाएगा। कोई निर्दोष पति कैसे साबित करेगा कि उसकी पत्नी झूठ बोल रही है। किसी महिला द्वारा दुष्कर्म का आरोप लगाये जाने पर पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती। भविष्य में यदि पति निर्दोष करार दिया जाता है तब उसके उन सालों को कौन लौटाएगा जो उसने खुद को बेदाग साबित करने में खपा दिए। झूठा आरोप लगाने वाली पत्नी को इसकी सजा मिलेगी? वैसे, अशोकनगर में सामूहिक बलात्कार का झूठा आरोप लगाने वाली एक महिला को सत्र न्यायालय ने दस वर्ष कैद की सजा सुनाई है।
बहरहाल, वैवाहिक दुष्कर्म पर नया कानून बनाने से पहले व्यापक विचार-विमर्श और चिंतन अवश्य होना चाहिए। पुरुषों की गरिमा पर प्रहार होने पर समाज में बिखराव के साथ विवाह संस्था का कमजोर होना तय है।
झूठे आरोपों के चलते वर्षों तक जेल में रहने के बाद यदि पति बरी हो जाए तब भी क्या अपमान के दागों को मिटाना संभव होगा? और चलते-चलते, हाल ही में बांबे हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था का हवाला देकर नाबालिग पत्नी से दुष्कर्म के आरोपित को अग्रिम जमानत देने से इंकार दिया। स्पष्ट है कि पति नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे दुष्कर्म, बाल विवाह निरोधक कानून और बाल यौन उत्पीडन रोक कानून के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।