नई दिल्ली । बिजली मंत्रालय ने राज्यों से खरीफ कटाई सत्र से पहले ताप बिजली संयंत्रों में कोयले के साथ बायोमास का भी उपयोग करने के लिए एक समयबद्ध योजना बनाने को कहा है। इससे पराली जलाने में कमी आएगी और वायु प्रदूषण को कम किया जा सकेगा। वायु प्रदूषण की समस्या के हल तथा ताप बिजली संयंत्रों के कॉर्बन उत्सर्जन को घटाने के लिए बिजली मंत्रालय ने पिछल साल अक्टूबर में कृषि अपशिष्ट आधारित बायोमास के इस्तेमाल की नीति में संशोधन किया था। संशोधित नीति के तहत ताप बिजली संयंत्रों के लिए कोयले के साथ ईंधन के रूप में पांच से सात प्रतिशत बायोमास के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया गया था। पराली जलाने की वजह से देश को हर साल वायु प्रदूषण की समस्या से जूझना पड़ता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बिजली मंत्रालय ने सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर कोयले के साथ बायोमास का ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए एक समयबद्ध नीति बनाने को कहा है। ताप बिजलीघरों के साथ स्वतंत्र बिजली संयंत्रों (आईपीपी) के लिए समयबद्ध योजना बनानी होगी।पत्र में मंत्रालय ने राज्यों, संघ शासित प्रदेशों से कहा है कि वे अपने संबंधित राज्य बिजली नियामक आयोग (एसईआरसी) के साथ इस मुद्दे को उठाएं जिससे बायोमास के इस्तेमाल को भी उनके शुल्क नियमनों में शामिल किया जा सके। बिजली मंत्रालय का यह कदम इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि खरीफ की कटाई के बाद सर्दियों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। पत्र में मंत्रालय ने कहा है कि बिजली संयंत्रों में कोयले की आपूर्ति की हालिया समस्या की वजह से कोयले के साथ बायोमास का ईंधन के रूप में इस्तेमाल और महत्वपूर्ण हो जाता है। पत्र में बायोमास के इस्तेमाल के आर्थिक पहलू का भी जिक्र किया गया है। इसमें गया है कि आयातित कोयले की लागत ऊंची बैठती है जबकि बायोमास कम मूल्य पर उपलब्ध होता है।