नई दिल्ली । चीन सीमा पर भारत और चीन के साथ विवाद जारी है। वह सीमा पर अक्सर उलझने का प्रयास करता है। दशकों तक दोनों देशों के बीच कोई खूनी झड़प नहीं होने के बाद दो वर्ष पूर्व गलवान में हुई घटना ने देश को चीन की ओर से लगातार बढ़ रहे खतरे के प्रति सोचने पर मजबूर कर दिया है।
चीन ने उन दिनों तनाव बढ़ने पर अपना सबसे बेहतरीन स्ट्रैटेजिक बॉम्बर विमान एच-6के सीमा के नजदीक तैनात कर दिया था। इस विमान का कोई जवाब भारत के पास नहीं था। इसके बाद भारतीय वायु सेना ने पहली बार स्ट्रैटेजिक बॉम्बर विमान की कमी महसूस की थी।
दो साल बाद भारत चीन के इस स्ट्रैटेजिक बॉम्बर का जवाब दुनिया के सबसे शक्तिशाली बॉम्बर से देने जा रहा है। खबरों के मुताबिक भारतीय वायु सेना जल्द रूस से टुपोलेव टीयू-160 की खरीद करने वाली है। रूस के इस घातक बॉम्बर को इसके रंग रूप की वजह से व्हाइट स्वान भी कहा जाता है। वहीं नाटो की सेना इसके प्रकोप को देखते हुए टीयू-160 को ब्लैक जैक के नाम से बुलाती है।
आवाज से भी दोगुनी तेज गति से चलने वाले इस बॉम्बर को दुनिया का सबसे भारी बॉम्बर कहा जाता है। 2,220 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ने वाला यह विनाशकारी बॉम्बर बालाकोट जैसी एयर स्ट्राइक पलक झपकते ही अंजाम दे सकता है। तुलना के लिए अगर भारत वापस बालाकोट जैसी एयर स्ट्राइक करता है तो इस एयर स्ट्राइक को अंजाम देकर वापस आने में भारतीय सेना को महज 15 सेकंड का समय लगेगा।
52 हजार फीट की ऊंचाई से उड़कर बमबारी करने की क्षमता रखने वाले इस बॉम्बर से अमेरिका भी खौफ खाता है। यह बॉम्बर अधिकतर दूसरे देशों में जाकर परमाणु बम गिराने के लिए काम में लिए जाते हैं। परमाणु बमों के अलावा पारंपरिक मिसाइल, रणनीतिक क्रूज मिसाइल और कम दूरी की निर्देशित मिसाइल भी इस बॉम्बर की मदद से दागी जा सकती है। बेहद तेज रफ्तार से उड़ने वाले इस बॉम्बर की खूबी है यह कि यह रडार की पकड़ में आसानी से नहीं आता। रूस ने सबसे पहले टीयू-160 बॉम्बर का निर्माण 1970 में शुरू किया था। 1987 में परीक्षण के बाद रूस ने इसे अपनी वायु सेना के बेड़े में शामिल कर लिया। तब से अब तक रूस कई बार इस विमान को अपग्रेड कर चुका है। फिलहाल रूस के पास ऐसे 16 टीयू-160 बॉम्बर मौजूद हैं और 10 नए टीयू-160 बॉम्बर का निर्माण चल रहा है।