पिछले दिनों अपने एक संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेवड़ी यानी मुफ्त वाली योजनाओं की संस्कृति पर पीड़ा जाहिर करने के बाद अब राज्यों की अर्थव्यवस्था पर रिजर्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में इस दोषपूर्ण नीति के कारण राज्यों की खस्ता होती आर्थिक हालत और गहराते ऋण संकट का जिक्र किया गया है। लोकलुभावन संस्कृति ने भारत की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को प्रभावित किया है। एक तरफ जहां मुफ्त बिजली के रूप में किसी न किसी रूप में सब्सिडी का वायदा किया जा रहा है, तो वहीं बिजली आपूर्ति करने वाली राज्यों की कंपनियों की बिगड़ती सेहत उनकी संभावनाओं को कमजोर कर रही है। क्या यह विडंबना नहीं है कि मुफ्त बिजली कभी-कभी सभी घरों, कभी वैकल्पिक, तो कभी आधे घरों को दी जाती है, बल्कि ये वादे तभी तक कायम रहते हैं, जब तक सरकार आर्थिक झंझावातों में नहीं फंसती और इस सुविधा को वापस लेने को मजबूर नहीं होती? दिल्ली सरकार की तरफ से बिजली सब्सिडी को वैकल्पिक बनाने का फैसला काफी हद तक बढ़ती लागत के कारण लिया गया था। आरबीआई ने बताया है कि पंजाब में मुफ्त बिजली का वायदा सतत विकास की ओर बढ़ने की उसकी क्षमता को कम करता है। कुछ उपभोक्ताओं के लिए कीमतें घटाने और कारोबारी संस्थानों एवं औद्योगिक इकाइयों से अधिक शुल्क वसूलने से दरअसल प्रतिस्पर्धा कम होती है और इससे आय व रोजगार में सुस्ती आती है। इसी तरह, सौर ऊर्जा को गंभीरता से प्रोत्साहित करने की बिजली वितरण कंपनियों की क्षमता उनकी आर्थिक स्थिति और दर-संबंधी संरचनाओं को विकसित न कर सकने जैसी रुकावटों से बाधित होती है। गैर-जीवाश्म ईंधन वाले युग की तरफ बढने की हमारी क्षमता राज्य बिजली बोर्डों की सेहत पर निर्भर है, लेकिन फ्रीबीज संस्कृति के कारण यह प्रभावित हो रही है। मुफ्त योजनाओं की ऐसी परिपाटी दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक सामंजस्य के लिए महंगी साबित होती है। दूसरी प्रतिबद्धता, मोदी सरकार बुनियादी सुविधाओं की एक विस्तृत शृंखला तक पहुंच सुनिश्चित करके विषमता की चुनौती से निपटना चाहती है। इन सुविधाओं में शामिल हैं-बैंकिंग, बिजली, आवास, बीमा, जल, स्वच्छ ईंधन आदि। इनकी असमानता दूर करने से हमारी आबादी की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। तीसरी प्रतिबद्धता, प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत अभियान व जल जीवन अभियान जैसी कल्याणकारी योजनाओं से मिलने वाले लाभ ने आम नागरिकों की एक बड़ी बाधा खत्म कर दी है। यह बाधा थी, इन सुविधाओं को हासिल करने की लागत। इसके अलावा, ये लोगों को सशक्त व आत्मनिर्भर बना रही हैं। जैसे, पीएम आवास योजना के तहत बने घर लाभार्थी परिवार के लिए जीवन भर की संपत्ति है। चौथी प्रतिबद्धता, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण में तकनीक का इस्तेमाल। एसईसीसी के माध्यम से लाभार्थियों की पहचान और वंचित सुविधाओं के मानदंड के आधार पर प्राथमिकता तय करने की परंपरा ने सरकार को उन लोगों की मदद करने में सक्षम बनाया है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूर है। जो सरकारें सार्वभौमिक सब्सिडी वाला शॉर्टकट अपनाती हैं, वे अक्सर गरीबों की अनदेखी करती हैं। दिल्ली में निचले तबकों के असंख्य परिवार पानी के कनेक्शन की कमी और दिल्ली जल बोर्ड की सीमित आपूर्ति के कारण पानी के लिए महंगे टैंकरों पर निर्भर हैं। इन घरों के लिए मुफ्त जल योजना का कोई मतलब नहीं है। विनिर्माण और रोजगार पर मुफ्त उपहारों का दुष्प्रभाव पड़ता है। यह कुशल और प्रतिस्पर्द्धी बुनियादी ढांचे से ध्यान भटकाकर विनिर्माण क्षेत्र की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करती है।
सिद्धार्थ शंकर, 07 अगस्त, 2022 (ईएमएस)