नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केवल ई-ऑटो को 4,261 नए परमिट जारी करने के श्आपश् सरकार के फैसले के खिलाफ बजाज ऑटो की एक याचिका खारिज कर दी, जिसमें कहा गया था कि दिल्लीवासी वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हैं, जिसमें वाहनों का बड़ा योगदान है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही सीएनजी ऑटो रिक्शा बीएस-6 अनुपालन कर रहे हैं, फिर भी कुछ कार्बन उत्सर्जन करते हैं। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की बेंच ने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा ई-ऑटोरिक्शा के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाले विज्ञापन को मनमाना नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह योजना और इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2020 के अनुरूप है। दिल्लीवासी वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हैं, निस्संदेह इसमें वाहनों का काफी योगदान है। भले ही सीएनजी ऑटो बीएस-6 अनुपालन कर रहे हैं, फिर भी कुछ कार्बन उत्सर्जन होता है। दिल्ली सरकार ने बजाज ऑटो द्वारा दायर याचिका का इस आधार पर विरोध किया कि सीएनजी ऑटो रिक्शा की तुलना ई-ऑटो से नहीं की जा सकती है। सरकार ने कहा कि परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने की दृष्टि से इलेक्ट्रिक वाहनों पर लाने का प्रस्ताव है। श्आपश् सरकार ने केंद्र की एएमइ -.. योजना और इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2020 का भी हवाला दिया। दिल्ली सरकार ने कहा कि 92,000 सीएनजी ऑटो रिक्शा पहले ही दिल्ली में पंजीकृत हो चुके हैं और पुराने सीएनजी ऑटो रिक्शा को बदलने की प्रक्रिया जारी है। दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने ई-ऑटोरिक्शा के लिए 4,261 नए परमिट के पंजीकरण के लिए ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित किए थे। बजाज ऑटो ने इस दावे के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था कि विज्ञापन मनमाना और मौजूदा सीएनजी थ्री-सीटर ऑटो रिक्शा (टीएसआर) के निर्माताओं के साथ भेदभावपूर्ण था। बेंच ने यह भी कहा कि हम इस बात से भी सहमत नहीं हैं कि आवेदक (बजाज ऑटो) के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है। मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन का मतलब यह नहीं माना जा सकता है कि सड़कों पर एक लाख से अधिक ई-ऑटो को उतारा जा सकता है।