मात्र 64 साल की उम्र में राष्ट्रपति बनी द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले में रहने वाले एक संथाल आदिवासी परिवार से आती हैं। राजनीति में आने से पहले वो एक स्कूल में अध्यापिका थीं। उनके पिता और दादा दोनों अपने अपने समय में सरपंच थे। वह खुद सन 1997 में बीजेपी से जुड़ीं और नगर पंचायत में सभासद चुनी गईं। फिर जल्दी ही उन्होंने विधायक बनकर ओडिशा सरकार में मंत्री बनने का भी सफर पूरा किया।मई 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया।
गोंड और भील के बाद संथाल देश के तीसरे सबसे बड़े आदिवासी समुदाय हैं।सन 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में उनकी कुल आबादी 70 लाख से ज्यादा है।ये आदिवासी पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड समेत सात राज्यों में पाए जाते हैं। ऐतिहासिक रूप से ये मूल रूप से खेती बाड़ी और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहे हैं।
आदिवासी समुदायों में सामान्य रूप से शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं होता और संथाल इस संदर्भ में विशेष रूप से पिछड़े हुए हैं। इनके आर्थिक हालात अच्छे नहीं होते और देश में अधिकांश संथाल गरीब हैं।सन2011 की जनगणना के मुताबिक पश्चिम बंगाल के संथालों में साक्षरता दर सिर्फ 54.72 प्रतिशत थी।मुर्मू का राष्ट्रपति बनना आदिवासी समाज के सशक्तिकरण का प्रतीक है।द्रौपदी ने पूरे जीवन में बहुत संघर्ष किया है। यह अथक संघर्ष का फल है। वह बहुत ही विनम्र और जमीन से जुड़ी महिला है। हर सुख और दुख में हमेशा साथ रहते हैं। उनकी सभी उपलब्धियां उनकी कड़ी मेहनत और संघर्ष का फल हैं। वह जब भी गांवों में आती हैं तो परिवार के बच्चों के लिए हमेशा चॉकलेट लेकर आती हैं। द्रौपदी मुर्मू ने साबित कर दिया कि महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं। महिलाएं किसी से कम नहीं हैं और कुछ भी हासिल कर सकती हैं।द्रौपदी का जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून सन 1958 को हुआ था। द्रौपदी संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखती हैं। उनके पिता बिरांची नारायण टुडू एक किसान थे। द्रौपदी के दो भाई हैं। भगत टुडू और सरैनी टुडू।द्रौपदी की शादी श्यामाचरण मुर्मू से हुई। उनसे दो बेटे और दो बेटी हुई। साल 1984 में एक बेटी की मौत हो गई। द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता। लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। बेटी को पढ़ाने के लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षक बन गईं।उन्होंने सन1979 से सन 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद सन 1994 से सन 1997 तक उन्होंने ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के रूप में कार्य किया था।
सन 1997 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा। ओडिशा के राइरांगपुर जिले में नगर पंचायत सभासद चुनी गईं। इसके बाद वह जिला परिषद की उपाध्यक्ष भी चुनी गईं। वर्ष 2000 में वह विधानसभा चुनाव लड़ीं। राइरांगपुर विधानसभा से विधायक चुने जाने के बाद उन्हें बीजद और भाजपा गठबंधन वाली सरकार में स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया।
सन 2002 में मुर्मू को ओडिशा सरकार में मत्स्य एवं पशुपालन विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। सन 2006 में उन्हें भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। सन 2009 में वह राइरांगपुर विधानसभा से दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतीं। इसके बाद सन 2009 में वह लोकसभा चुनाव भी लड़ीं, लेकिन जीत नहीं पाईं।सन 2015 में द्रौपदी को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। सन 2021 तक उन्होंने राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। मुर्मू देश की पहली आदिवासी हैं जो राष्ट्रपति के पद तक पहुंची। आज तक कोई भी राष्ट्रपति आदिवासी समाज से नहीं बना है। पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति होने का रिकॉर्ड भी मुर्मू के नाम दर्ज हो गया।आज तक बने सभी राष्ट्रपतियों का जन्म आजादी से पहले यानी 1947 से पहले हुआ था। द्रौपदी मुर्मू पहली राष्ट्रपति हैं, जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है। मुर्मू का जन्म 20 जून सन 1958 को हुआ है। 64 साल की द्रौपदी मुर्मू देश की सबसे युवा राष्ट्रपति बन गई हैं। मुर्मू से पहले ये रिकॉर्ड नीलम संजीव रेड्डी के नाम पर था। रेड्डी जब राष्ट्रपति बने तब उनकी उम्र 64 साल दो महीने थी। वहीं, मुर्मू जब शपथ ली तब उनकी उम्र 64 साल एक महीने है।द्रौपदी मुर्मू के नाम दूसरी महिला राष्ट्रपति होने का रिकॉर्ड भी दर्ज हो गया। मुर्मू से पहले सन 2007 से सन2012 तक प्रतिभा देवी सिंह पाटिल राष्ट्रपति रह चुकी हैं। प्रतिभा पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति थीं। आज तक कोई भी राष्ट्रपति ओडिशा से नहीं बना था। द्रौपदी मुर्मू पहली राष्ट्रपति हैं जो ओडिशा की रहने वाली हैं। इससे पहले वीवी गिरी ऐसे राष्ट्रपति थे जिनका ओडिशा से संबध था। गिरी का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के बहरामपुर में हुआ था, जो अब ओडिशा में है। हालांकि, गिरी तेलुगु परिवार से संबंध रखते थे। उनकी कर्मभूमि आंध्र प्रदेश रही। यहीं से वो सांसद बनते रहे।लेकिन द्रौपदी मुर्मु ऐसी पहली शख्सियत है जो आदिवासी होने के साथ साथ रूहानियत की भी धनी है।उनके राजनीतिक व सामाजिक जीवन पर कभी सवाल नही उठे बल्कि उनके प्रभावी व्यक्तित्व की हर किसी ने तारीफ की है।देश दुनिया मे शांति, सदभाव, चरित्र निर्माण का पैगाम दे रहे ब्रह्माकुमारीज संस्था से महामहिम का आना निश्चित ही सुखद है।